Updated: April 17, 2025 at 20:43 IST
दिल्ली, 17 अप्रैल 2025
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए इस अधिनियम के कुछ प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगा दी है। अदालत ने स्पष्ट किया कि अगली सुनवाई तक ‘वक्फ बाय यूज़र’ के तहत आने वाली संपत्तियों की यथास्थिति बनी रहेगी और गैर‑मुस्लिमों को वक्फ बोर्डों और परिषदों में नामित करने वाले प्रावधानों पर भी रोक लागू रहेगी।
‘वक्फ बाय यूज़र’ पर न्यायिक चिंता
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधनों की वैधता पर सवाल उठाए, विशेषकर “वक्फ बाय यूज़र” की अवधारणा को हटाए जाने को लेकर। अदालत ने कहा कि “ऐसी संपत्तियों को अचानक वक्फ की परिभाषा से बाहर करना कानूनी अनिश्चितता और विवाद को जन्म दे सकता है।”
हालांकि याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि देशभर में 4.02 लाख वक्फ संपत्तियाँ “यूज़र” की श्रेणी में आती हैं, लेकिन कोर्ट ने इस आँकड़े की पुष्टि नहीं की है।
ओवैसी का विरोध और संवैधानिक तर्क
AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने अधिनियम को संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन बताते हुए कहा कि यह मुस्लिम समुदाय की धार्मिक संपत्तियों और धार्मिक संस्थाओं की स्वायत्तता को कमजोर करता है। ओवैसी ने अदालत में कहा:
“हम वक्फ एक्ट को असंवैधानिक मानते हैं”: @asadowaisi
— Muslim Spaces (@MuslimSpaces) April 17, 2025
SC में #WaqfAmendmentAct की सुनवाई पर असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, "कोर्ट ने कहा है कि सेंट्रल वक्फ काउंसिल और स्टेट वक्फ काउंसिल का गठन नहीं किया जाएगा और 'वक्फ बाय यूजर' को हटाया नहीं जा सकता। जेपीसी की चर्चा के दौरान मैंने सरकार… pic.twitter.com/8T8vVlAiJg
“यह अधिनियम एक बार वक्फ को हमेशा वक्फ का सिद्धांत ताक पर रखता है और मुस्लिम समुदाय की उत्तराधिकारी संपत्तियों पर सरकार का नियंत्रण बढ़ाता है,” ओवैसी ने अदालत में प्रस्तुत किए गए अपने बयानों में कहा।
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि वक्फ परिषदों में गैर‑मुस्लिमों की नियुक्ति, धार्मिक मामलों में राज्य के अनुचित हस्तक्षेप के समान है।
कानूनी पृष्ठभूमि और विवाद का मूल
“वक्फ बाय यूज़र” की अवधारणा को 2013 के वक्फ (संशोधन) अधिनियम में मान्यता दी गई थी, न कि 2019 के राम जन्मभूमि केस में, जैसा कि कई रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है। नया अधिनियम 2025 इस अवधारणा को हटाने और वक्फ परिषदों की रचना में बदलाव लाने का प्रस्ताव करता है।
इस संशोधन को चुनौती देते हुए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) समेत कई मुस्लिम संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएँ दायर की हैं।
आंदोलन और रणनीति
AIMPLB ने घोषणा की है कि वह 19 अप्रैल को हैदराबाद में एक बैठक करेगा, जिसमें संशोधन अधिनियम के खिलाफ भावी रणनीति तैयार की जाएगी। मुस्लिम संगठन इसे धार्मिक संस्थाओं के अधिकारों में हस्तक्षेप मानते हैं।
सरकारी पक्ष और अगली सुनवाई
भारत सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल ने तर्क दिया कि यह संशोधन धार्मिक पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए आवश्यक है, लेकिन कोर्ट ने कहा कि यह तय करना आवश्यक है कि क्या इससे धार्मिक स्वतंत्रता पर असंगत प्रभाव पड़ता है।
अगली सुनवाई 5 मई 2025 को निर्धारित है।
निष्कर्ष और संभावित प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश यह सुनिश्चित करता है कि इस दौरान कोई संपत्ति परिवर्तन या सत्ता में पुनर्गठन न हो। मामला अभी लंबित है, लेकिन यह भारत में धार्मिक स्वतंत्रता बनाम राज्य की भूमिका जैसे बड़े संवैधानिक सवालों को उठाता है।
मानवाधिकार समूह, धार्मिक संगठन और संवैधानिक विशेषज्ञ इस मामले की गंभीरता से निगरानी कर रहे हैं।