Updated: April 24, 2025 at 00:03 IST
कश्मीर के सुंदर पर्यटन स्थल पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने देशभर को झकझोर दिया। लेकिन यह हमला केवल एक स्थान पर हिंसा नहीं था, बल्कि जैसा कि अंतरराष्ट्रीय रणनीतिक विश्लेषक और मीडिया व्यक्तित्व अमजद ताहा ने कहा—यह एक प्रतीकात्मक हमला था, जो मानवता, सह-अस्तित्व और शांति के खिलाफ था।
पहल्गाम: सिर्फ पहाड़ और नदियों का इलाका नहीं
पहलगाम, जो लिद्दर घाटी में स्थित है, न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है बल्कि एक ऐसी जगह है जहाँ हिंदू, सिख और मुस्लिम समुदाय सदियों से शांतिपूर्वक साथ रहते आए हैं। अमजद ताहा ने इसे एक “मोज़ेक ऑफ कल्चर्स” बताया और कहा कि यह सौहार्द और सभ्यता की प्रगति उन्हें डराती है जो नफरत और आतंक में विश्वास करते हैं।
“मैं खुद पहलगाम की गलियों से गुज़रा हूँ,” उन्होंने X पर लिखा। “यह जगह सिर्फ खूबसूरती नहीं, बल्कि इंसानियत का प्रतीक है। यही वो चीज़ है जिससे आतंकवादी डरते हैं।”
आतंक की आड़ में ‘चैरिटी’ और ‘शिक्षा’
ताहा ने यह भी चेताया कि आजकल आतंक की जड़ें सिर्फ जंगलों या सीमा पार नहीं, बल्कि बड़े शहरों के बीच चैरिटीज और एजुकेशनल सेंटर्स के नाम पर भी छुपी होती हैं। उन्होंने Islamic Relief, Holdco UK Properties Limited और Cambridge Education and Training Center Ltd जैसे संगठनों के नाम लिए जो UK में संचालित हैं पर असल में आतंक फंडिंग से जुड़े हो सकते हैं।
वह कहते हैं कि ये संस्थाएं UAE जैसे देशों में प्रतिबंधित हैं, लेकिन पश्चिमी देशों में अब भी मासूम नामों के पीछे नफरत और जिहाद का एजेंडा फैलाती हैं।
एक स्थानीय त्रासदी में छिपा वैश्विक संदेश
ताहा ने साफ कहा कि पहलगाम हमला सिर्फ भारत पर नहीं, बल्कि मानव गरिमा और शांति की आकांक्षा पर हमला है। “यह उन शहरों पर वार है जो सपने देखते हैं – एक शांतिपूर्ण भविष्य के,” उन्होंने कहा।
यह संदेश केवल कश्मीर के लिए नहीं, बल्कि उन सभी स्थानों के लिए है जो धार्मिक सौहार्द और सह-अस्तित्व में विश्वास रखते हैं।
धर्मों की नहीं, मूल्यों की लड़ाई
उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि यह संघर्ष किसी धर्म के खिलाफ नहीं, बल्कि निर्माण बनाम विनाश की विचारधाराओं के बीच है। “पहलगाम एक प्रतीक है—एक ऐसी जगह जो आतंकियों को याद दिलाती है कि वे कभी वैसा नहीं बन सकते जैसे लोग यहाँ मिलकर बनाते हैं।”
संवाद नहीं, न्याय की ज़रूरत
अंत में ताहा ने यह भी कहा कि ऐसे कट्टर संगठनों से संवाद नहीं, बल्कि बिना हिचक न्याय की ज़रूरत है। “ये लोग शांति की भाषा नहीं समझते। ये केवल सख्त कार्रवाई की भाषा समझते हैं।”