Updated: April 16, 2025 at 20:34 IST
भारत की धार्मिक परंपराओं में संतों और प्रवचनों की भूमिका हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। समय-समय पर विभिन्न संतों की शिक्षाएं और उनके अनुयायियों की व्याख्याएं धार्मिक विमर्श को नया मोड़ देती हैं। वर्तमान में एक ऐसी ही वैचारिक बहस तेजी से उभर रही है — अनिरुद्धाचार्य जी और संत रामपाल जी महाराज के अनुयायियों के बीच।
यह बहस केवल किसी सोशल मीडिया ट्रेंड तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारतीय धार्मिक परंपराओं की बुनियाद, शास्त्रों की व्याख्या और मोक्ष की अवधारणा से जुड़ी एक गहरी विचारधारा को सामने ला रही है।
क्या है विवाद का मूल?
अनिरुद्धाचार्य जी, जो वृंदावन स्थित गौरी गोपाल आश्रम के संस्थापक और प्रसिद्ध कथावाचक हैं, अपने प्रवचनों में श्रीकृष्ण को सर्वोच्च परमात्मा बताते हैं और परंपरागत कर्मकांडों जैसे पिंडदान, श्राद्ध और पितृ पूजा को आवश्यक मानते हैं।
दूसरी ओर, संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी इन मान्यताओं को चुनौती देते हुए कहते हैं कि ये पद्धतियां गीता और वेदों के अनुसार नहीं हैं। वे शास्त्र आधारित भक्ति का समर्थन करते हैं और संत रामपाल जी को “तत्वदर्शी संत” के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
प्रमुख धार्मिक बिंदु जो बहस का केंद्र बने
- भगवद गीता का ज्ञानदाता कौन?
संत रामपाल जी के अनुयायी गीता अध्याय 11, श्लोक 32 का हवाला देकर कहते हैं कि गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण ने नहीं, बल्कि ‘काल’ ने दिया है। वहीं, अनिरुद्धाचार्य जी श्रीकृष्ण को गीता के वक्ता और परमात्मा मानते हैं। - परमात्मा की पहचान
अनिरुद्धाचार्य जी के अनुसार श्रीकृष्ण ही सर्वोच्च भगवान हैं, जबकि संत रामपाल जी के अनुयायी गीता अध्याय 15, श्लोक 17 का उल्लेख कर कहते हैं कि श्रीकृष्ण से भी अलग कोई परम तत्व है, जो सबका पालन करता है — जिसे वे ‘कबीर साहिब’ मानते हैं। - श्राद्ध और पितृ पूजा
जहां अनिरुद्धाचार्य जी इन कर्मकांडों को धार्मिक जीवन का हिस्सा मानते हैं, वहीं रामपाल जी के अनुयायी गीता अध्याय 9, श्लोक 25 के आधार पर इनका विरोध करते हैं, यह कहते हुए कि पितरों की पूजा से मुक्ति संभव नहीं। - पापों का नाश और भक्ति
अनिरुद्धाचार्य जी का कथन है कि पाप भोगे बिना खत्म नहीं होते, जबकि यजुर्वेद अध्याय 8, मंत्र 13 को उद्धृत करते हुए रामपाल जी के अनुयायी कहते हैं कि परमात्मा अपने भक्त के घोर पाप भी नष्ट कर सकता है। - मोक्ष मंत्र और राधा की महिमा
एक अन्य बहस यह भी है कि अनिरुद्धाचार्य जी ‘राधे राधे’ को वेदों का मूल मंत्र बताते हैं, जबकि उनके आलोचक कहते हैं कि वेदों में राधा नाम का कोई उल्लेख नहीं मिलता, जिससे उनकी बात शास्त्रसम्मत नहीं मानी जा सकती।
सोशल मीडिया की भूमिका
सु-प्रसिद्ध #फर्जी_कथावाचक_अनिरुद्धाचार्य जी के प्रशंसकों ध्यान दीजिए! उनके बिना सिर-पैर की बातों से आपके वर्तमान में समय के साथ-साथ भविष्य भी खतरे की ओर बढ़ रहा है।
— Rubi…✨ (@_ChilD_0f_GOD) April 16, 2025
अब मुर्ख न बनें क्योंकि Aniruddhacharya Exposed हो चुकें है। देखें Factful Debates पर Complete video! 🙏🏻 pic.twitter.com/wJUQpyvZm3
X (पूर्व ट्विटर) जैसे प्लेटफॉर्म्स पर यह बहस तेजी से फैल रही है। हैशटैग #फर्जी_कथावाचक_अनिरुद्धाचार्य एवं Aniruddhacharya Exposed के तहत अनिरुद्धाचार्य जी के बयानों की आलोचना की जा रही है। कई पोस्टों में उनके प्रवचनों को शास्त्रविरुद्ध बताया गया है और वीडियो क्लिप्स के साथ प्रमाण देने की कोशिश भी की गई है।
हालांकि, अनिरुद्धाचार्य जी के अनुयायी इस अभियान को नकारात्मक प्रचार मानते हैं और उनका कहना है कि वे श्रद्धा, प्रेम और संस्कृति की भावना से लोगों को जोड़ते हैं।
निष्कर्ष
यह बहस महज़ दो संतों के विचारों की तुलना नहीं है, बल्कि एक व्यापक धार्मिक विमर्श को उजागर करती है — कि क्या श्रद्धा और कर्मकांड ही धर्म का आधार हैं, या केवल शास्त्रों पर आधारित ज्ञान और तत्वदर्शी संत की शरण ही मोक्ष का मार्ग है?
जहां एक ओर परंपरागत धार्मिक भावनाएं हैं, वहीं दूसरी ओर शास्त्र आधारित विवेक है। यह विवाद दर्शाता है कि भारत में धार्मिक सोच लगातार विकसित हो रही है और नई पीढ़ी अब केवल भावनाओं से नहीं, बल्कि शास्त्रों की गहराई से जुड़े तथ्यों से भी प्रश्न कर रही है।