Updated: May 12, 2025 at 16:25 IST
“विनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति॥”
— रामचरितमानस, लंका काण्ड
भूमिका:
भारतीय संस्कृति में रामचरितमानस केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक जीवन मार्गदर्शिका है। इसमें वर्णित घटनाएं और संवाद आज भी हमारी समाज व्यवस्था, नेतृत्व क्षमता, और नैतिक मूल्यों को समझने में मदद करते हैं। ऊपर दी गई चौपाई उनमें से एक है जो आज भी गहराई से सोचने पर मजबूर कर देती है।
पंक्तियों का भावार्थ:
“विनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति।”
प्रभु श्रीराम विनम्रता से तीन दिन तक समुद्र से मार्ग देने की प्रार्थना करते रहे, लेकिन समुद्र (जो यहाँ जड़ रूप में प्रस्तुत है) ने कोई उत्तर नहीं दिया।
“बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति॥”
तब श्रीराम क्रोधित होकर बोले: “भय के बिना प्रीति नहीं होती।”
संदर्भ:
लंका काण्ड में जब प्रभु श्रीराम समुद्र पार कर रावण से युद्ध करने की तैयारी कर रहे थे, तब उन्होंने पहले शांति और विनय के मार्ग से समुद्र से प्रार्थना की कि वह मार्ग दे दे ताकि सेना लंका पहुंच सके। लेकिन तीन दिन बीत जाने के बाद भी समुद्र ने कोई उत्तर नहीं दिया। तब श्रीराम ने सहनशीलता की सीमा को पार होते देख क्रोध प्रकट किया और कहा – “भय बिना प्रीति नहीं होती।”
इससे क्या शिक्षा मिलती है?
- विनय (नम्रता) अच्छी है, लेकिन सीमित समय तक:
जब सामने वाला आपकी विनम्रता को कमजोरी समझने लगे, तो दृढ़ता जरूरी हो जाती है। - प्रेम और भय दोनों का संतुलन ज़रूरी है:
यह चौपाई बताती है कि सिर्फ प्रेम या विनय से हर समस्या हल नहीं होती, कुछ स्थितियों में न्यायसंगत कठोरता भी आवश्यक होती है। - नेतृत्व का गुण:
एक अच्छा नेता वही है जो समय आने पर कठोर निर्णय भी ले सके, जैसा कि श्रीराम ने किया।
आज के संदर्भ में प्रासंगिकता:
- नेतृत्व में: सिर्फ विनम्रता और अनुरोध से लक्ष्य नहीं प्राप्त होता। कभी-कभी दबाव और निर्णय भी लेने पड़ते हैं।
- पालन-पोषण में: बच्चों से सिर्फ प्यार करना काफी नहीं होता, उन्हें अनुशासन भी सिखाना होता है।
- समाज व्यवस्था में: अगर अनुशासन नहीं होगा, तो प्रेम और सौहार्द्र टिक नहीं पाएंगे।
- रक्षा क्षेत्र में: राष्ट्रीय सुरक्षा में सिर्फ संवाद और विनम्रता से काम नहीं चलता, कभी-कभी निर्णायक कदम और कठोर कार्रवाई भी जरूरी होती है।
निष्कर्ष:
यह चौपाई केवल एक संवाद नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन है। यह हमें सिखाती है कि जब शांति और विनय काम न आए, तब दृढ़ता और क्रोध (जो धर्म के लिए हो) भी जरूरी हो जाता है। श्रीराम का यह रूप हमें यह बताता है कि सहनशीलता की भी एक सीमा होती है और सच्चा प्रेम या सम्मान तभी टिकता है जब सामने वाले को आपके बल और संकल्प का भी ज्ञान हो।